कार्तिक पूर्णिमा पर तीनों लोकों से न्यारी काशी में देवलोक सा नजारा रहा। स्वर्ग जैसे गंगा का अर्धचंद्राकार किनारा दीपों की सजावट से जगमगा उठा। विश्वविख्यात देव दीपावली पर गंगा तट से लेकर शहर भर में सजी दीपमालाओं से पूर्णिमा का चांद भी शरमाने लगा।
84 घाटों पर एक साथ 15 लाख दीपों की लड़ियों ने आसमान के तारों को भी मात दे दी। कहीं फूलों की लड़ियां सजीं तो कहीं रंगोलियां। कहीं हल्दी-चंदन से अल्पनाएं उकेरी गईं तो कहीं फुलझड़ियों की सतरंगी बौछारें उत्सव में आनंद का संचार करती रहीं। हर-हर महादेव, हर-हर गंगे और धार्मिक गीत-संगीत से पूरा वातावरण सांस्कृतिक, धार्मिक भावना से सराबोर हो गया।
राजघाट से अस्सी तक अद्भुत, अलौकिक और दिव्य दीपावली की झलक पाने को देश ही नहीं दुनिया भर के लोग उमड़े। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी नगरी में कार्तिक पूर्णिमा की शाम अनूठे उत्सव में घाटों पर जलते लाखों दीयों ने मां गंगा के गले में अद्भुत-अलौकिक चंद्रहार दमकने का आभास कराया।
84 घाटों पर एक साथ 15 लाख दीपों की लड़ियों ने आसमान के तारों को भी मात दे दी। कहीं फूलों की लड़ियां सजीं तो कहीं रंगोलियां। कहीं हल्दी-चंदन से अल्पनाएं उकेरी गईं तो कहीं फुलझड़ियों की सतरंगी बौछारें उत्सव में आनंद का संचार करती रहीं। हर-हर महादेव, हर-हर गंगे और धार्मिक गीत-संगीत से पूरा वातावरण सांस्कृतिक, धार्मिक भावना से सराबोर हो गया।
राजघाट से अस्सी तक अद्भुत, अलौकिक और दिव्य दीपावली की झलक पाने को देश ही नहीं दुनिया भर के लोग उमड़े। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी नगरी में कार्तिक पूर्णिमा की शाम अनूठे उत्सव में घाटों पर जलते लाखों दीयों ने मां गंगा के गले में अद्भुत-अलौकिक चंद्रहार दमकने का आभास कराया।