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Lata Mangeshkar: बनारस के कड़वे अनुभवों के कारण यहां आने से हिचकती थीं लता मंगेशकर, बाबा विश्वनाथ के दर्शन की इच्छा रह गई अधूरी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: गीतार्जुन गौतम Updated Sun, 06 Feb 2022 07:36 PM IST
Lata Mangeshkar passes away: Lata Mangeshkar was hesitant to come banaras due to bitter experiences desire to see Baba Vishwanath remained unfulfilled
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भारत रत्न लता मंगेशकर को काशी से लगाव था लेकिन बनारस से उनके जुड़े अनुभव बेहद कड़वे भी थे। यही कारण था कि दो बार बनारस आने के बाद वह फिर कभी बनारस नहीं आईं। लता मंगेशकर के ज्योतिषी सलाहकार स्वामी ओमा द अक ने बताया कि दीदी के दिल में बनारस बसता था लेकिन बनारस से उनकी कड़वीं यादें जुड़ी हुई थीं।

लता दीदी से जब मैंने पूछा कि वह बनारस क्यों नहीं आती हैं तो उन्होंने ही पुरानी यादों का जिक्र करते हुए बताया था कि जब वह बनारस आई थीं तो बीएचयू में कार्यक्रम के दौरान मंच पर वह शास्त्रीय संगीत गा रही थीं। क्लासिकल बंदिश जैसे ही खत्म हुई तो छात्रों ने फिल्मी गीतों की मांग शुरू कर दी। इसके बाद तो उन्होंने मंच छोड़ दिया। उन्हें बेहद दुख हुआ था।
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इसके बाद जब वो अपने कमरे पर पहुंची तो घाट के सामने ही कमरे की खिड़की खुलती थी। तभी देखा कि हरिश्चंद्र घाट पर एक मुर्दा जल रहा था और अचानक वह हिलने लगा और जलती चिता से बाहर निकल आया। यह दृश्य देखकर तो उनके रौंगटे खड़े हो गए और बेहोश हो गईं। उसके बाद लता जी से बनारस आने की बात होती तो दोनों कड़वे अनुभव उनके सामने जीवंत हो जाते।
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बावजूद इसके बनारस के प्रति श्रद्धा अगाध थी। वह बाबा विश्वनाथ में दर्शन व अभिषेक तथा संकटमोचन मंदिर में दर्शन पूजन करना चाहती थीं। यह इच्छा उनके साथ ही चली गई। अभी पांच जनवरी को ही उनसे बात हुई थी तो वह थोड़ी अस्वस्थ थीं।
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ओमा द अक के शिष्य साकिब भारत ने बताया कि गुरुजी के उनसे पारिवारिक संबंध थे और हर जन्मदिन पर तोहफे जरूर भेजती थीं। हम जब मुंबई जाते थे तो उनसे मुलाकात जरूर होती थी।
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लता दीदी को गीता और गालिब के शेर बहुत पसंद थे, इसीलिए हर साल एक चराग ए दैर सम्मान की शुरूआत की गई। इस बार इस सम्मान के लिए आशा भोसले आने वाली थीं।
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